धनपुरी ( मध्य प्रदेश ) :- देश के अंदर कोयले की आवश्यकता कितनी है यह बताने की जरूरत नहीं है लेकिन कोयले की जितनी मांग देश में है उतनी उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है जिसका एक बड़ा कारण कोयले का विशाल भंडार होने के बाद भी खदानें खुल नहीं रही और मामला कहीं ना कहीं अटका पड़ा ही होता है आज अगर देखा जाए तो एसईसीएल सोहागपुर एरिया में कोयले का अपार भंडार है लेकिन कहीं पर खदान खुलने का इंतजार है तो कहीं पर खदान चल रही है लेकिन आगे की जमीन न मिलने से खदान बंद होने के नजदीक पहुंचता जा रहा है ऐसे में उच्च स्तरीय पर समस्याओं का समाधान होना चाहिए वह होता हुआ नजर नहीं आ रहा है और कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिल रहा है
राजेंद्रा भूमिगत खदान का यह खदान आज पूरे एरिया में भूमिगत खदानों में सबसे पुरानी कहीं जाती है यहां पर आज भी कोयले का विशाल भंडार है लेकिन यहां पर जिस तरह जमीन से संबंधित मामले आ रहे हैं उससे इस खदान का भविष्य बहुत अधिक समय तक शायद देखने को न मिले वर्तमान में राजेंद्रा भूमिगत खदान जहां से कोयले का उत्पादन हो रहा है उसके आगे की जमीन प्रबंधन को न मिलने से 2 से 3 साल के अंदर यह खदान बंद होने की स्थिति में पहुंच जाएगा जबकि इस खदान में आज भी कोयले का भंडार है और अगर सभी समस्याओं का समाधान कर इस खदान को बढ़ाने के लिए अनुमति मिल जाए तो आने वाले 10 साल तक यह खदान अनवरत चल सकती है लेकिन मामला बोर्ड में अटका हुआ है और अनुमति न मिलने से फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही है और यही कारण है कि खदान का भविष्य कितने दिनों तक और रहेगा इस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
40 लाख टन कोयले का भंडार-
एसईसीएल सोहागपुर एरिया के राजेंद्रा भूमिगत खदान में आज भी कोयले का अपार भंडार है बताया जाता है कि करीब साडे 300 एकड़ जमीन छिरहटी में अगर अधिग्रहण की कार्रवाई हो जाती है तो यहां पर 40 लाख टन कोयले का विशाल भंडार है इस तरह अगर यहां से कोयले का उत्पादन हुआ तो इससे प्रबंधन को अरबों रुपए का लाभ भी अर्जित होगा लेकिन इसके लिए जिस तरह के प्रयास होने चाहिए वह आज भी देखने को नहीं मिल रहा है जबकि 175 हेक्टेयर जमीन में लाखो टन कोयला दबा हुआ है और अगर खदान आगे चलने की अनुमति ना मिलो आने वाले 2 साल में यह खदान बंद होने की स्थिति में पहुंच जाएगा इस तरह जो लाखों टन कोयला यहां पर मौजूद है वह भी नहीं निकल पाएगा जिसका नुकसान भी प्रबंधन को होगा।
बोर्ड में स्वीकृति के लिए भेजी जा चुकी है फाइल-

राजेंद्रा भूमिगत खदान में कोयले की कोई कमी नहीं है बस मामला जमीन का है अगर इसका समाधान होता है क्या न सिर्फ कोयले का अपार भंडार मिलेगा बल्कि यह खदान आने वाले 10 सालों तक और चल सकती है जमीन की स्वीकृति को लेकर प्रयास कई सालों से चल रहा है तत्कालीन महाप्रबंधक श्री चंद्राकर ने फाइल बनाकर मंजूरी के लिए बोर्ड भेजा था लेकिन वहां से इसे मंजूर नहीं किया गया इसके बाद भी उन्होंने काफी प्रयास किया लेकिन निराशा ही नजर आई उनके स्थानांतरण के बाद महाप्रबंधक आरपी सिंह ने इस मामले को आगे बढ़ाया फिर से फाइल स्वीकृति के लिए बोर्ड भेजा गया लेकिन इसी बीच उनका स्थानांतरण हो गया अब महाप्रबंधक शंकर नागाचारी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी नियमों की पूर्ति कर फाइल बनाकर मंजूरी के लिए बोर्ड भेजा है देखना होगा इस बार क्या देखने को मिलेगा वैसे महाप्रबंधक अपनी ओर से खदान आगे बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं बोर्ड अगर इसे स्वीकृति दे देता है तो यह सोहागपुर एरिया के लिए भी अच्छी खबर होगी इसके लिए जनप्रतिनिधियों एवं श्रम संगठनों को भी आगे आना होगा।
100 लोगों से अधिक लोगों को मिल सकता है रोजगार-
राजेंद्रा भूमिगत खदान जहां पर संचालित है वहां आगे की जमीन मैं विशाल को ले का भंडार है जिसके लिए जमीन का अधिग्रहण करना होगा और यह तभी संभव होगा जब बोर्ड इसकी मंजूरी देगा अगर मंजूरी मिलती है तो इसका लाभ प्रबंधन के साथ-साथ काश्तकारों को भी होगा बताया जाता है कि करीब 100 से भी अधिक लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा जो पूरे क्षेत्र के लिए अच्छी खबर होगी सवाल यह उठता है कि एरिया प्रबंधन अगर पूरे मामले को समझते हुए इस खदान को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है तो फिर इस पर गंभीरता उच्च स्तर पर क्यों नहीं दिखाया जा रहा है बोर्ड अगर इसे स्वीकृति देता है तो यहां पर जो कोयले का विशाल भंडार है वह निकाला जा सकता है और इससे प्रबंधन को करोड़ों रुपए का लाभ भी होगा।
10 साल से अधिक चलेगी खदान-
राजेंद्रा भूमिगत खदान पूरे एरिया में अपनी अलग पहचान भी रखता है ऐसे में जिस तरह से यहां पर कोयले की मात्रा कम होती जा रही है उससे इस खदान का भविष्य अदर में नजर आने लगा है लेकिन अगर खदान को आगे बढ़ाने की मंजूरी मिलती है तो यह खदान 10 सालों से भी अधिक समय तक चल सकती है यही कारण है कि एरिया प्रबंधन इस मामले को पूरी गंभीरता से देख रहा है लगातार स्वीकृत कराने को लेकर फाइल बोर्ड में भेजा जा रहा है और अगर मंजूरी मिलती है तो यहां पर जो लाखो टन कोयला है उसका उत्पादन किया जा सकेगा।